यह गीत कहता है कि सच्ची मुक्ति केवल वैराग्य से नहीं मिलती बल्कि प्रेम समर्पण से मिलती है क्योंकि प्रेम इतना नाजुक है कि मिट्टी के घड़े की तरह टूट जाता है आज संवेदनाएँ, करुणा, दया और भक्ति कम हो रही हैं और रूप-रंग तथा दिखावे का संसार बढ़ गया है ! भक्ति शक्ति आराधना प्रार्थना भजन कीर्तन अर्चन गीत, वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला, Vairaagy Saadhan Se Milejo Mukti Vo Mukti Na Bhola, Writer ✍️ #Halendra Prasad,

 गीत =} #वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला 

  #Vairaagy Saadhan Se Milejo Mukti Vo Mukti Na Bhola

           Writer ✍️ #Halendra Prasad 

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          प्रेम बन्धन से मिलेगा एक दिन मुक्ति रे भोला 

        वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला 

            तेरे जग का प्रेम भोला तर्क ए दुनियां है

          आवारा है अश्क इसकी खंजर पे खड़ा है 

          मिट्टी के बर्तन के जैसा टूट कर बिखरता है

            मिल जाता मिट्टी में ये मिट्टी से जलता है

        घड़ा जैसा सुन्दर दिखता सबके मन को भाता 

             टूट जाता रास्ते में अब चल नहीं पाता 

          प्रेम बन्धन से मिलेगा एक दिन मुक्ति रे भोला 

       वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला


       कानों को ना मिलती है अब मधुर मीठी वाणिया 

       जैसे मिलती नासिका को सुगन्ध वाली हाड़िया 

          अमृत आनन्द का वो सवेरा ना रहा अब

      श्रवण सुख सब लुप्त हुआ अंधेरा छा गया अब 

          करुणा दया ना अब है कृपा की कंजूसी है

           तेरी दुनियां में भोला रूप रंग की खुशी है 

            गुणों की स्तुति करता कौन इस जहां में

             कौन है पुजारी यहां सत्य की हवा में

         प्रेम बन्धन से मिलेगा एक दिन मुक्ति रे भोला 

      वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला


         कोई नहीं झुकता यहां सब के सब अमीर है

           कोई काली देवी है तो कोई टेढ़ी खीर है

        मोम बत्तियों के आगे ना है घी का वो दीपक

        पूरे विश्व में फैला है सब आँखों का नसीहत

    एकदिन ऐसा आया था जब दीपशिखा का मोल था

      कर दिया था रोशन जग को ज्ञान का प्रतीक था

       सैकड़ों दीप जलते थे रोशनी जग में भरते थे 

       भक्ति उत्साह का दर्शन आँखों से हम करते थे

        प्रेम बन्धन से मिलेगा एक दिन मुक्ति रे भोला 

      वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला


      पुष्पों से खिलता था मन्दिर ज्योति जगमगाकर 

         रोशनी को भर देता था हृदय को हंसा कर

       उसके प्रकाश का ज्योति अजबे निराली था

     दिव्य के प्रकाश में जगमग ज्ञान का सुखारी था

            मैं नहीं चाहता हूं योगासन ऐसा होवे 

          बिन वश के इंद्रियों को वो कैसे योग सोहे

       पूरे जग का दृश्य अब गंध का अनुभव करता 

       डूबता आनन्द में जाकर मन ध्यान को भूलता

       प्रेम बन्धन से मिलेगा एक दिन मुक्ति रे भोला 

     वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला

गीत =} #वैराग्य साधन से मिलेजो मुक्ति वो मुक्ति ना भोला 

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