यह गीत भक्ति, विनम्रता और आत्मस्वीकार की पराकाष्ठा है।यह केवल “दुःख माँगने” का गीत नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि के लिए माँ के चरणों में समर्पण की आर्त पुकार है।भक्ति शक्ति आराधना प्रार्थना भजन कीर्तन अर्चन गीत, मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ, Main Hun Anapadh Anaadee Mujhko Duhkh Dedo Maa, Writer ✍️ #Halendra Prasad,

     

गीत =} #मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 

#Main Hun Anapadh Anaadee Mujhko Duhkh Dedo Maa

           Writer ✍️ #Halendra Prasad 

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          सबको खुशी के समन्दर का तुम सुख देदो माँ 

            मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 

            सोचता ना बुझता मैं तो ज्ञान मेरे अन्दर ना 

           भरा है अज्ञान मुझमें मैं ज्ञान का समंदर ना 

            तेरे परिषद से आया कर कुछ ना पाया हूँ 

            अपनी गुनाहों से मै अपना घर सजाया हूँ 

             तेरे आदेश को मानकर बना मैं बुरा हूँ 

           आँखों की जलधार में मैं चुप चाप खड़ा हूँ 

         सबको खुशी के समन्दर का तुम सुख देदो माँ 

           मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 


              नूतन नवीन राग से मुझको सवारों 

         हृदय की नवीनता को माई अब तुम उभारों

          अपने स्वर के पथ मेरा रास्ता बनाओ तुम

          कोई ना उद्देश्य है मेरा दर्शन पेठाओ तुम

            तेरी दर्शन को चाहूं चाहूं ना मैं दौलत

               याद में खड़ा हूँ आस के बदौलत 

             कोई मुझे मूर्ख कहे कोई कहे पागल 

             पत्थर के जैसा हूँ मैं सुनता ना घायल

        सबको खुशी के समन्दर का तुम सुख देदो माँ 

          मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 


              साम के अभा में मैं तुझको पुकारु 

           दिखती हो आसमा बीच तुझको नेहारू 

         ये बादलों का दुःख मुझको कितना रुलाता 

             ढक देते तुझको माँ मुझको दुखाता 

            तेरी चरणों का दर्शन कितना दुर्लभ है

        आँखों में समन्दर भरदे सुखा भी विफल है 

        रोज रोज आती हो तुम आकर चली जाती हो

          गंगा के जैसा तुम भीष्म को जिलाती हो

       सबको खुशी के समन्दर का तुम सुख देदो माँ 

         मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 


         आधी आधी रात को तुम मेरे पास आती हो

            गहरे स्वरों से मुझे बार बार बुलाती हो

            कितना करुणा है तुझमें कितना दया है 

            छोड़ नहीं पाती हो तुम कैसा माया है

         पूरब से आती हो कभी पक्षिम से आती हो

        उत्तर से आती हो कभी दक्षिण से आती हो

        जीवन का विशेष क्या है मुझको बताया तूने

         भर लिया आँचल में तू हृदय में बसया तूने

      सबको खुशी के समन्दर का तुम सुख देदो माँ 

         मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 

 गीत =} #मैं हूँ अनपढ़ अनाड़ी मुझको दुःख देदो माँ 

#Main Hun Anapadh Anaadee Mujhko Duhkh Dedo Maa

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टिप्पणियाँ

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