||अंतर्मन की आँखें खोल||

                     

||अंतर्मन की आँखें खोल||

     सच को तू पहचान जमाना सचमुच स्वरूप तुम्हारा है

      स्वर्ग लोक से आई विभूतियां जिसपे हक तुम्हारा है

    सब कुछ है इस जग में सारा निंदा नीच विभूतियां सारा

    क्या लेना है तुमको जग में उसको भी तुम भांप जमाना


     स्वर्ग तुम्हारी धन दौलत है जन्मसिद्ध अधिकार तुम्हारा 

   प्रवेश करो अब परमधाम में जहां शान्ति का अर्जन सारा

     सुख ही सुख है देवलोक में जहां रहते है देव तुम्हारा

         ना चिन्ता चतुराई वहां नहीं है होड़ ईच्छा का 


   अखंड शान्ति की दीप जलते है अखंड तृप्ति वहां मिलती 

     शुद्ध पवित्र की तूफान चलते है शुद्ध आत्मा हो जाती

           छोड़ विकारों को अब तू अपनी ध्यान लगा

          आसुरी लीला के बंधन से मुक्त हो दिखला 


         भय भूतों के चक्कर में तू जीवन तंग बनाया

      देख ना पाया इस सृष्टि को जिसने तुम्हे उपजाया

           स्वर्ग सारा है इस सृष्टि में अंतरमन से ढूंढो

    भीतर के आंखों से देखो उपलब्ध हासिल कर लाओ 


        क्यों चिंता में डूबे हो तुम क्यों करता चतुराई 

      फैली है जो पाप पीड़ा भय वो तेर हिंसे में ना आई

        मोह की लहरों ने तुझको अब शोक में डाला है

        मन सरोवर में घुसकर तुझको अब भरमाया है


   उथल पुथल जो मन में करता हलचल खूब मचाता है 

    उत्पन्न करता है दुष्ट क्रूरता उन्मत्त में छुप जाता है

    सम्बन्ध नहीं विक्षोभों से जो शैतान बनाता तुझको

 शक शंकाओं में उलझाकर इधर उधर विचलाता तुझको


      पल पल में उत्तेजित करता पल पल में जलाता 

       शुद्ध शान्त पवित्र आत्मा को पीड़ा में पैठाता 

      सोच जरा तू मन से उसको जो तेरे पास आता

     दुख पीड़ा शंका को देकर खुशियां तुम्हे दिखाता


   खोला जरा तू आंख का पटर देख जरा तू अपने को

   अपनाया कुत्सित को तूने तो उत्कृष्ट कहा से आता 

       जीवन की ईच्छा को तूने अपना घर बनाया

    छोड़ दिया अनमोल रत्न को जो तुझको बतलाया 


     शक्ति अपरम्पार तुम्हारी मानव का प्रमाण बताया

  आँख उठाकर देख जरा तू सृष्टि भी आधिपत्य बताया

       शक्तिशाली प्राणी भी तू शक्ति का बलवान है

  

    धरती माँ का बेटा बनकर धरती का विद्वान है

टिप्पणियाँ

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