खामोशी की कसमसाहट पे विश्वाश का सौदागर||
||खामोशी की कसमसाहट पे विश्वाश का सौदागर||
जब चाह खामोशी आती है जंजीर बनाकर लाती है
होठों की आलमारी में आवाज सजाकर आती है
रंग बिरंगी चोला पहनी चतुर चांद की रूप सजाई
दोष ना माने अपनी वो तो कस्ती में भी नॉव चलाई
साथ नहीं दे पाता जो भी साथी ना सौदागर है
विश्वाश दिलों का सौदा करता मानव नहीं वो डांगर है
शर्त सवाल को जन्म देता है बुद्धि भ्रष्ट कर देता
कामना की खाई में गिरकर जिन्दा ही मार देता
विस्तार करे वो वाणी जिसमें कलह कलेश आए
खींच कर लाता खड्ढे में जिससे सब द्वेष बढ़े
अंधकार आचनक आता है जब आँखों को भरलेता
प्रेम की बातें करते करते आंसू भर रो देता है
हिसाब किताब को करने वाले भाड़े पर मिल जाते
दुनियां को आजमाने वाले आटे पर टिक जाते
कौन खोया है कौन पाया है किसका है ये छाया
खफा हुआ जो जग में आकर किसने उसे मनाया
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